यह मात्र शिल्पकला की विधि का नियम है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि घर अच्छी तरह से हवादार है।
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अब भाई ये तो विधि का नियम है जो शुरू हुआ है उसका अंत तो होना ही है लेकिन एक के अंत से दूसरे का जन्म होता है, ये भी तो नियम है.
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प्रिय तुम्हे पाने की खातिर तनती रही, समतल सनी शीशे की सी बिछी रही और तुम थे उस ऊंचाई पर चांदनी की चाह ओढे झक रजत चन्द्रिका की शुभ्र प्रभा की रश्मियों से घिरे था यही विधि का नियम न पहुँचना था मुझे, न पहुँची मैं बस चलती
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प्रिय तुम्हे पाने की खातिर तनती रही, समतल सनी शीशे की सी बिछी रही और तुम थे उस ऊंचाई पर चांदनी की चाह ओढे झक रजत चन्द्रिका की शुभ्र प्रभा की रश्मियों से घिरे था यही विधि का नियम न पहुँचना था मुझे, न पहुँची मैं बस चलती
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प्रिय तुम्हे पाने की खातिर तनती रही, समतल सनी शीशे की सी बिछी रही और तुम थे उस ऊंचाई पर चांदनी की चाह ओढे झक रजत चन्द्रिका की शुभ्र प्रभा की रश्मियों से घिरे था यही विधि का नियम न पहुँचना था मुझे, न पहुँची मैं बस चलती...
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प्रिय तुम्हे पाने की खातिर तनती रही, समतल सनी शीशे की सी बिछी रही और तुम थे उस ऊंचाई पर चांदनी की चाह ओढे झक रजत चन्द्रिका की शुभ्र प्रभा की रश्मियों से घिरे था यही विधि का नियम न पहुँचना था मुझे, न पहुँची मैं बस चलती रही अविरल हर कदम हर पत्थर पारती और रहे तुम अजेय उसी ढलान पर चढी थी मैं...................